खुले रहेंगे इन पलकों के द्वार
चले आना
नींद के आने से पहले
चाँद के जाने से पहले।
इधर लोचनों में उमड़ा है
आँसू का सागर
उधर तुम्हारे द्वार उठ रहे
शहनाई के स्वर
अंतिम दर्शन के हित
अंतिम बार चले आना
पालकी उठने से पहले
कि पीहर छुटने से पहले
खुले रहेंगे इन पलकों के...
बिना भ्रमर के किसी कली का
खिलना ही क्या है
पतझर में प्रेमी हृदयों का
मिलना ही क्या है
बीत न जाए कहीं बसंत बहार?
चले आना
फूल के खिलने से पहले
धूल में मिलने से पहले
खुले रहेंगे इन पलकों के...
आज मरण शैया पर हैं
मन की अभिलाषाएँ
फिर भी साथ न छोड़ रही हैं
झूठी आशाएँ
द्वार खड़े चारों कहार तैयार?
चले आना
श्वास के ढलने से पहले
चिता में जलने से पहले
खुले रहेंगे इन पलकों के...
-सुरेंद्र मोहन मिश्र
3 comments:
अत्यंत मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी।
बहुत सुंदर मन के भावों को दर्शाता, विरह गीत । रेणु चन्द्रा
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति पूनम मिश्रा'पूर्णिमा'
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