सागर की प्यास...
बेसुध हैं
रोम रंध्र
विकल मनाकाश
मैं ठहरा
तुम ठहरे
सागर की प्यास
चंदा की कनी कनी
चंदन में सनी सनी
हौले से उतर आई
आंगन में छनी छनी
मैं भीगा
तुम भीगे
सारा अवकाश
मेंहदी के पात-पात
रंग लिए हाथ-हाथ
चुपके से थाप गये
सेमर के गात-गात
मैं डूबा
तुम डूबे
आज अनायास
सांसों की गंध-गंध
मदिर मदिर मंद मंद
जाने कब खोल गए
तार-तार बंध-बंध
मैं भूला
तुम भूले
सारा इतिहास
-निर्मल शुक्ल
4 comments:
बहुत ही अलग तरह की रचना, सुंदर गीत ।
किरन सिंह
चंदा की कनी कनी
चंदन में सनी सनी
हौले से उतर आई
आंगन में छनी छनी,
आहा मनमोहक शब्द जाल,बहुत सुंदर। साझा हेतु आभार।
प्रेम की सोंधी गंध में रचा-बसा गीत, बेहद मधुर!
"मैं भूला, तुम भूले
सारा इतिहास " - सिर्फ वर्तमान मुखर है जो प्रेम से लबालब भरा है - जो भी है -यही एक पल है. सुंदर!
- रेखा शर्मा
Post a Comment