Saturday, November 25, 2023

खिलखिलाती

खिलखिलाती 
धूप है मन की सतह पर
एक कुहरीली सुबह है
और तुम हो

इस शिशिर में भी
सुखों के भार से
कंधे झुके हैं
जो नयन थे
सोंठ जैसे
पुन: अदरक हो चुके हैं
दृष्टि में नव-उत्सवों के 
रंग भरती 
आज रंगीली सुबह है
और तुम हो

पढ़ चुकी है
रात हरसिंगार की
सारी कहानी
जी रही
ईंगुर सजाकर 
नये जीवन की निशानी 
इस प्रणय को भोर का
तारा दिखाती 
एक सपनीली सुबह है
और तुम हो

याद वे दिन
आ रहे हैं
तुम नहीं थे, बस शिशिर था
बीतता था हर प्रहर
मन में कहीं पर
स्वयं थिर था
चाय की हैं चुस्कियाँ
अब अक्षरों पर
साथ में गीली सुबह है
और तुम हो

-राहुल शिवाय


1 comment:

किरन सिंह said...

बहुत सुंदर गीत “और तुम हो “